चीन बड़ा व्यापारी तो बन गया है, लेकिन उसके पास डॉलर और पश्चिमी बॉन्ड नहीं हैं। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग को जिस दिन लगेगा कि वह अमेरिका को हरा सकते हैं, तब ही हमला होगा। ये यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के एसओएस चाइना इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रो. स्टीव त्सांग का आकलन है।
क्या ताइवान पर चीन जल्द हमला करेगा?
रूसी हमले के यूक्रेनी जवाब को देखकर हालात बदल रहे हैं। चीन पर निर्भर देश अब अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं। जिनपिंग का कार्यकाल 2035 तक है। युद्ध 2030 से 2035 के बीच कभी हो सकता है।

क्या अमेरिका, चीन का मुकाबला करने में सक्षम है?
अमेरिका केवल चीन को रोकना चाहता है। अमेरिका इतना चाहता है कि ताइवान के पास सैन्य और अन्य संसाधन इतने रहें कि चीन आक्रमण करने से कतराए। अमेरिका के लिए ये जीत है, जबकि चीन इसे अपनी हार मानता है। जिस दिन जिनपिंग को लगे कि वे युद्ध जीत सकते हैं, युद्ध रुक नहीं सकेगा।

चीन और अमेरिका के लिए ताइवान महत्वपूर्ण क्यों है?
ताइवान अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर निर्माता है। चीन, ताइवान पर कब्जे से अमेरिकी टेक्नोलॉजी प्रभुत्व खत्म होगा। जिनपिंग हारे तो चीन में कम्युनिस्ट पार्टी खत्म होगी। युद्ध में हार देख ताइवान अपना सेमीकंडक्टर बेस खत्म कर देगा, जो चीन और अमेरिका के लिए खतरनाक होगा।

भारत पर असर नहीं पड़ेगा?
चीन को आशा नहीं है कि भारत दखल देगा। चीन को नहीं लगता कि भारत, अमेरिका के साथ खड़ा होगा। मैं मानता हूं कि भले ही भारत, चीन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा माने, लेकिन चीन ऐसा नहीं मानता।
क्या अमेरिका, ताइवान की मदद करेगा?

अमेरिका ताइवान को बचाने के लिए तो आ सकता है, लेकिन यदि ताइवान चीन को भड़काए तो वह ताइवान के कदम का कतई समर्थन नहीं करेगा। चीन को दिक्कत ताइवान में बेहतर लोकतंत्र से है। वैसे, यदि चीन ताइवान का विलय करता है या उस पर हमला करता है तो एशिया प्रशांत में समीकरण बदलेंगे।