प्रयागराज में हिंसा के मुख्य आरोपी जावेद पंप के घर को बुलडोजर से जमींदोज करने पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। जावेद के साथ ही उनकी बड़ी बेटी आफरीन फातिमा भी विवादों में हैं। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से PhD कर रहीं आफरीन नागरिकता कानून से लेकर हिजाब से जुड़े मुद्दों पर काफी एक्टिव रही हैं।

10 जून हिंसा के दिन पुलिस रात करीब 8:30 बजे जावेद को अपने साथ ले गई थी। इसके बाद पुलिस पूछताछ के लिए जावेद की पत्नी और उनकी छोटी बेटी सुमैया फातिमा को महिला थाने ले गई। 33 घंटे तक उन्हें थाने में ही रखा गया। पढ़ें पूरी कहानी सुमैया की जुबानी…
पुलिसवाले अब्बू को कोतवाली ले गए, नहीं लौटे तो परिवार टेंशन में
सुमैया ने कहा- अब्बू एक सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं, इसलिए पुलिस व अधिकारियों के बीच उनका उठना-बैठना लगा रहता था। हिंसा वाले दिन भी अब्बू नमाज पढ़कर आए, इसके बाद उनके पास फोन आने शुरू हुए और घटना की जानकारी लगी। जब शाम की नमाज का वक्त हुआ तो अब्बू फिर नमाज अदा करने चले गए। इस बीच, घर पर पुलिस आई। उन्होंने अब्बू के बारे में मुझसे पूछा। थोड़ी ही देर में अब्बू भी नमाज पढ़कर घर आ गए थे।

पुलिस ने उन्हें कोतवाली चल कर कुछ बात करने को कहा, क्योंकि अब्बू आए दिन प्रशासन व अन्य अधिकारियों संग मीटिंग के लिए जाते रहते थे, इसलिए वह पुलिसवालों के साथ चले गए। आमतौर पर वह 1-2 घंटे के अंदर घर आ जाते थे, मगर उस दिन ऐसा नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद उनके एक दोस्त अब्बू के लिए शुगर और बीपी की दवाई लेने आए। कुछ अजीब तो लगा मगर हमने दवाई दे दी और इंतजार करने लगे। तीन-चार घंटे बीतने पर जब कोई खबर नहीं लगी तो पूरा परिवार टेंशन में आ गया कि आखिर हुआ क्या है।
अब्बू के पास ले जाने का बोलकर महिला थाने पहुंचाया

रात करीब 12:30 बजे गेट पर एक बार फिर पुलिसवाले आए। इस बार उनमें महिला कांस्टेबल भी थी। उन्होंने हमसे कहा कि आपको हमारे साथ चलना होगा। दरवाजा मैंने ही खोला था और मां भी काफी घबराई हुई थीं। घर में सभी महिलाएं ही थीं। हमने पूछा कि क्या आप हमें अब्बू के पास ले जा रहे हैं? उनकी कोई जानकारी है, पुलिसवालों ने हामी भरी और मैं अपनी अम्मी के साथ पुलिस की गाड़ी में बैठ गई। मगर पुलिस हमें कोतवाली के बजाए महिला थाने ले आई। यहां हमसे पूछताछ करना शुरू किया।
फोन लिया फिर वॉट्सएप से लेकर इंस्टाग्राम सब खंगाला

अब्बू की खबर पाने के लिए हम जल्दबाजी में निकल आए थे। हाथ में सिर्फ एक मोबाइल था और कुछ नहीं। थाने पहुंचे तो सबसे पहले वही हमसे ले लिया गया। मेरे और अम्मी के सभी कॉन्टैक्ट खंगाले जा रहे थे। वॉट्सएप चैट पढ़ी जा रही थी। फैमिली ग्रुप हो या फ्रेंड्स का ग्रुप सभी चैट पढ़ी गईं। उर्दू में लिखे मैसेज का मतलब पूछा गया। मुझसे पूछा कि तुम किस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हो। मैंने कहा- मैं सिर्फ इंस्टाग्राम चलाती हूं। उसे भी जांचा गया। जब कुछ नहीं मिला तो परिवार के लोगों के बारे में सवाल करना शुरू किया।
घर के सभी लोगों के बारे में पूछे सवाल

पिता क्या करते हैं? घर में कौन आता है, वह किन-किन लोगों से मिलते-जुलते हैं? क्या पोस्ट लिखते हैं? कैसा व्यक्तित्व है? इसी तरह के तमाम सवाल पूछे गए। इसके बाद नंबर आया परिवार के बाकी सदस्यों का। घर में कौन है, क्या काम करते हैं।
सुमैया बताती हैं कि वह दो भाई और तीन बहन हैं। दोनों बड़े भाइयों की शादी हो चुकी है। वह दिल्ली में रहते हैं। तीन बहनों में सबसे बड़ी बहन भी अपने ससुराल में रहती है। इसके बाद आफरीन हैं जोकि JNU में पढ़ती हैं। सबसे छोटी हैं सुमैया फातिमा। गर्मियों की छुट्टियों के चलते उनकी बड़ी भाभी अपने दो बच्चों के साथ ससुराल आई थीं। इसके अलावा उनकी एक महिला रिश्तेदार और घर में रुकी हुई थीं। आफरीन की PhD की परीक्षा होनी थी। इसलिए वह भी इस वक्त घर पर थी और परीक्षा की तैयारी कर रही थीं।
बेटी को JNU क्यों भेजा, पता है कि वहां क्या होता है?

सुमैया ने कहा- हम बारी-बारी से घर से सभी सदस्यों के बारे में बता रहे थे। मगर जैसे ही मैंने अपनी बहन आफरीन के बारे में बताया कि वह JNU में पढ़ती है, महिला पुलिसकर्मी का रवैया ही बदल गया। वह हमें शक की निगाहों से देखते लगी। थोड़ी जानकारी लेने के बाद वह बाहर चली गई। जब वापस आई तो अम्मी से कहा कि बेटी को JNU क्यों भेजा। आपको पता है कि वहां क्या होता है? कैसी पढ़ाई होती है। आपकी बेटी वहां क्या करती थी? क्या लिखती थी?
रात करीब 2 से 2:30 बजे के करीब ही पुलिस एक बार फिर हमारे घर पहुंची। मगर उस वक्त तक आफरीन को समझ आ गया था कि यहां कुछ गड़बड़ चल रहा है। इसलिए उन्होंने यह कहकर साथ आने से इंकार कर दिया कि घर में सिर्फ महिलाएं ही हैं और देर रात को किसी भी महिला को थाने ले जाने का प्रावधान नहीं है। इसके बाद हमारा मकान भी टूट गया, मगर आफरीन का कुछ पता नहीं लगा कि वह इस वक्त कहां है। फोन पर हमारा संपर्क नहीं हो पा रहा है। परिवार में किसी को उनकी कोई खबर नहीं है।

‘घर तो तुम्हारा टूटेगा ही, सामान खाली करवा लो’
थाने में पूरी रात एक कुर्सी पर बैठे रहे। हर थोड़ी देर में कोई महिला अधिकारी आती कुछ सवाल पूछती और फिर चली जाती। यह सिलसिला अगले दिन तक भी जारी रहा। 11 जून के दिन हमारे पास एक महिला कांस्टेबल आई और कहा कि तुम्हारा मकान तो टूटकर ही रहेगा, ऊपर से ऑर्डर हैं। चाहो तो अपना सामन खाली करवा लो। यह सुनते ही अम्मी रोने लगीं। हम बेहद परेशान हो गए थे, अब्बू का पता नहीं था। घर में किसी से संपर्क हुआ नहीं और फिर मकान टूटने की खबर मिली। मैंने पुलिस से अपील की हमें फोन पर घर में किसी से बात करने दें, लेकिन इसकी इजाजत नहीं मिली।
टीवी पर अपने घर को टूटते हुए देखते रहे
जिस दिन हमारा मकान टूटा है उस दिन 9 बजे तक मुझे और अम्मी को एक रिश्तेदार के घर छोड़ दिया गया और साफ कहा गया कि आप अपने घर नहीं जाएंगे। हम लोग टीवी पर अपने घर को टूटते हुए देखते रहे। भाभी ने पड़ोसियों की मदद से घर का कुछ सामन तो बचा लिया था। मगर पूरी दुनिया ने हमारी बर्बादी का मंजर लाइव देखा।
सिर दर्द हुआ तो दवा जरूर मिली, मगर फोन नहीं दिया
सुमैया बताती हैं कि हिरासत में उन्हें खाना-पानी सब दिया जा रहा था। यहां तक की हर थोड़ी-थोड़ी देर में पूछताछ होने से सिर दर्द होने लगा। पुलिसकर्मी से दवा मांगी तो वो भी मिली। मगर जैसे ही अपना मोबाइल मांगा तो साफ इंकार कर दिया गया। घर जाने की बोलते तो कहते अभी नहीं जा सकते, पूछताछ बाकी है।
सुमैया कहती हैं, हमारे वकील मिलने की कोशिश कर रहे थे तो उन्हें भी अंदर आने की इजाजत नहीं दी जा रही थी। कहा गया कि हम थाने में है ही नहीं, बड़ी मुश्किल से एक महिला वकील को मिलने की इजाजत मिली मगर उससे भी बात नहीं कर सके। हिरासत में हमसे किसी भी कागज पर दस्तखत नहीं करवाए गए, हालांकि मोबाइल की डिटेल्स जरूर ली गई।
पुरुष कांस्टेबल ने मां पर बनाया दबाव
सुमैया की कहना है कि जब हमारे पास से कोई भी सबूत नहीं मिला तो एक पुरुष कांस्टेबल ने मेरी अम्मी परवीन फातिमा को काफी कुछ सुनाया। वह उनके ऊपर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे। हमें गंदी-गंदी गालियां सुनाई जा रही थीं। मेरे अब्बा और बहन के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा था। मगर बस यह नहीं बताया जा रहा था कि हमारी गलती क्या है ? हमें यहां बंद क्यों कर रखा है।