आदिवासी मुझ में अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सेंट्रल हॉल में अपने पहले भीषण में वहां मौजूद गणमान्य व्यक्तियों को संबोधित करते हुए कहा कि मेरे लिए बहुत संतोष की बात है कि जो सदियों से वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझ में अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं. मैं आज समस्त देशवासियों को, विशेषकर भारत के युवाओं को तथा भारत की महिलाओं को ये विश्वास दिलाती हूं कि इस पद पर कार्य करते हुए मेरे लिए उनके हित सर्वोपरि होंगे.
उन्होंने कहा मेरे इस निर्वाचन में, पुरानी लीक से हटकर नए रास्तों पर चलने वाले भारत के आज के युवाओं का साहस भी शामिल है. ऐसे प्रगतिशील भारत का नेतृत्व करते हुए आज मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं. उन्होंने कहा कि मैं चाहती हूं कि हमारी सभी बहनें व बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाती रहें.
द्रौपदी मुर्मू ने कहा, ‘आज मैं खुद को भारत का नेतृत्व करते हुए गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। मैं आज देश की महिलाओं और युवाओं को याद दिलाती हूं कि मेरे लिए उनके हित सर्वोपरि हैं। मेरे सामने राष्ट्रपति पद की ऐसी महान विरासत है, जिसने दुनिया में भारत के लोकतंत्र की प्रतिष्ठा को मजबूत किया है। संविधान के आलोक में मैं पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगी। मेरे लिए लोकतांत्रिक आदर्श और समस्त देशवासी ऊर्जा का स्रोत रहेंगे।’ उन्होंने इस दौरान कारगिल विजय दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं भी दीं।
देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू ने इस मौके पर पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, भीमराव आंबेडकर, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और महात्मा गांधी का भी जिक्र किया। यही नहीं रानी लक्ष्मीबाई समेत कई महिला शासकों का भी उन्होंने जिक्र किया। उन्होंने आदिवासियों की विरासत याद दिलाते हुए कहा कि कोल क्रांति, भील क्रांति समेत कई ऐसे आंदोलन रहे हैं, जिनका नेतृत्व आदिवासियों ने किया और इससे देश की आजादी का संघर्ष मजबूत हुआ। आजादी की लड़ाई में जनजातीय समुदाय के योगदान को समर्पित म्यूजियम बनवाया जा रहा है। एक संसदीय लोकतंत्र के रूप में भारत ने पूरी मजबूती के साथ कदम आगे बढ़ाए हैं।
जी-20 सम्मेलन का जिक्र कर बोलीं- देश की बढ़ रही है साख
उन्होंने हम एक भारत श्रेष्ठ भारत के निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं। आजादी के 75वें वर्ष के अवसर पर अमृत काल में हमें नया अध्यायों को जोड़ना है। कोरोना महामारी का सामना करने में भारत ने सामर्थ्य दिखाया है, उससे दुनिया में साख बढ़ी है। हम हिंदुस्तानियों ने अपने सामर्थ्य से इस चुनौती का सामना किया और दुनिया के सामने नए मानदंड स्थापित किए। द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि देश में जी-20 सम्मेलन होने जा रहा है, जिससे निश्चित तौर पर दुनिया के लिए अहम संदेश निकलेगा। उन्होंने कहा कि मैं आदिवासी परंपरा से आती हूं, जिसमें पर्यावरण का संरक्षण अहम होता है।
कहा- अपना नहीं जगत का कल्याण है जरूरी
द्रौपदी मुर्मू ने कहा, मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है। जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है, ‘मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ’। अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है। उन्होंने कहा मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी की पंक्तियां भी दोहराईं
देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति ने कहा कि मैं अपने देश के युवाओं से कहना चाहती हूं कि आप न केवल अपने भविष्य का निर्माण कर रहे हैं बल्कि भविष्य के भारत की नींव भी रख रहे हैं। देश के राष्ट्रपति के तौर पर मेरा हमेशा आपको पूरा सहयोग रहेगा। मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं। आज हम इसे सच होते देख रहे हैं।